प्रेम की कविता

तुम्हे तुमसे भी ज्यादा चाहने लगा हूँ,

तुम्हे तुमसे भी ज्यादा जानने लगा हूँ |

 

जब से तुमको देखा है मेरी दुनिया ही बदल गई,

ख्वाबों ने लिया ऐसा रूप और तुम मेरी बन गई |

                                                                                       

चलो आओ एक नए रिश्ते की बुनियाद रखते है हम-तुम,

प्यार के इस राह में एक बार खुद को आजमाए हम-तुम |

 

जब से तुम मेरे जीवन में हो आई,

मुझे हर चीज बदली सी दे रही है दिखाई |

 

अब तो मैं तेरी चाहत की खुशबू से अपनी सांसो को महकाता हूँ ,

देखता हूँ जब भी आईना तुझको ही सामने पाता हूँ |

 

आओ अब उम्र भर के लिए एक-दूजे के हो जाए हम-तुम, 

इस रिश्ते को मजबूत बनाए हम-तुम |

 

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हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जो पहली नजर में आँखों में बसी  हो..

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जो देखकर इश्क़ को शरमायी  हो

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जो ख़्वाबों में आई  हो

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जो इश्क़ की ज़ुल्फो से खेला हो

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जिसमें बनी बात बिगड़ी  हो

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जो देख कर इश्क़ को इतराया हो

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जिसकी साँसो की खुशबू मन में बसी  हो

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जिसने मिलने की इश्क़ से जिद की  हो

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जिसमें रूठना मनाना  होता

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें 

जिसमे थोड़ी टकरार होती  हो

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जिसमें मंजूरी का एहसास  हो

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जिसमें दूरी का एहसास  हो

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जिसमें रोना  पड़ता हो

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जिसमें संभालें  जी संभलता हो

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जिसमें उसका हाल किसी से पूछा  हो

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जिसमें याद  जाए भुलाने पर

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जिसमें अकेले दिन बीत  जाए सालों तक

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जो रोया  हो रातों को

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जिसने संभाले हो अपने जज्बातों को

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जिसने लिखा  हो कुछ उस इश्क़ के बारे में

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जिसने इश्क़ जरा भी किया  हो

 

हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,

जिसने इश्क़ जरा भी किया  हो

 

धन्यवाद

(सचिन ओम गुप्ताचित्रकूट धाम)

 

कुछ यादें – कुछ सपने

कुछ यादेंकुछ सपने

 

.” बस वही यादें

 

यादें एक सरल शब्द है,

केवल जहन की बातें या तकलीफें हैं यादें,

कुछ बातें, कुछ मुलाकातें और फिर यादें |

मिलना और मिल के बिछड़ना ,

तस्वीरें देख के आँसू का फिसलना

और रह जानी हैं तो बस क्या, यादें

बस वही यादें…बस वही यादें …

 

 

.” जिन्दगी की पहेली बड़ी उलझी सी है

 

जिंदगी की पहेली बड़ी उलझी सी है,

सोचता हूँ…

सुबह उठूँ ,मस्ती करूँ

नदियाँ और झरने देखूँ

कुछ मन की उलझनों को पन्नों पर लिख सकूँ,

इस खुलें आसमान को छू सकूँ

इस दुनिया की खूबसूरती को महसूस कर सकूँ

नई ऊँचाइयों की डगर को छू सकूँ,

कुछ सपनें बुनूँ और उन्हें जी सकूँ

पर जीवन की उलझनों के आगे किसकी चलती है,

जिंदगी की पहेली बड़ी उलझी सी है |

जिंदगी की पहेली बड़ी उलझी सी है |

 

धन्यवाद् …

(सचिन ओम गुप्ता, चित्रकूट धाम)

 

 

“तलाश”

तलाश

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भारतीय लड़कियों को जीवन में दो लोगों की शिद्दत से तलाश रहती है। शादी से पहले अच्छे पति की और शादी के बाद अच्छी कामवाली की। अच्छा पति अगर ज़्यादा अच्छा हो तो लड़की को दूसरी तलाश से बचाया भी सकता है। चूंकि विशाल उतना अच्छा नहीं है फिर भी उसकी बीवी की दूसरी तलाश अब भी जारी है।

पिछले एक साल में न जाने कितनी कामवालियां आईं, कितनी गईं और कितनी निकाली गईं मगर बात नहीं बनी। हर किसी के साथ अलग रंग और डिज़ाइन की समस्या है। कोई सूरज की परछाई से समय का अंदाज़ा लगाती है और देर से पहुंचती है, किसी की मान्यता है कि काम किया नहीं निपटाया जाता है, कोई संगीत प्रेम के चलते रोज नया सामान तोड़ विभिन्न ध्वनियों का आनंद लेती है, तो कोई हाव-भाव से पहले दिन ही बता देती है कि सवारी अपने सामान की खुद ज़िम्मेदार है। वहीं कुछ ऐसी भी हैं जिनकी दिलचस्पी काम में कम और कलंक कथाएं सुनाने में ज़्यादा रहती है और बकौल बीवी इंट्रेस्ट न लेने पर वो हर्ट भी हो जाती है।

सुबह के सात बजे हैं। विशाल की बीवी की दाईं आंख फड़क रही है। विशाल कहता है लगता है कुछ बुरा होने वाला है। उसकी बीबी कहती है कि शादी को तो एक साल हो गया फिर आज क्यों फड़क रही है। विशाल अब चुटकी लेता है , क्योंकि अब उसकी भी आंख फड़क रही थी।

इस बीच घड़ी नौ बजाने लगती है। अख़बार वाला, कचरे वाला, दूध वाला एक-एक कर ‘जितने वाले’ है सब आ चुके हैं मगर ‘उस कामवाली’ का कोई पता नहीं। फड़कती आंख को वजह मिल गई है। धड़कने बढ़ने लगी है। बीवी टूटने लगी है। विशाल सहम गया । रसोई में पड़े बर्तन जोर-जोर से विशाल- विशाल चिल्ला रहे थे । दस बज चुके हैं। अब वो नहीं आएगी। इस हफ्ते दूसरी और महीने में उसकी पांचवी छुट्टी है। अब विशाल की बीबी आत्मविश्वास खोने लगी है। सोचने लगी है कि शायद उसी में कोई खोट है जिस वजह से कोई काम वाली टिकती नहीं। समझ नहीं पा रहा विशाल की क्या किया जाए। अगली कामवाली से बीवी की जन्मपत्री मिलवाऊं, दोनों को कोई नग पहनाऊं, हवन करवाऊं, लाल रंग के कुत्ते को ग्रिल्ड सैंडविच खिलाऊं या फिर हरी ईंट पर गुलाबी दिया जलाऊं।

अब विशाल सोचता है कभी -कभी की इन सभी का दोषी खुद वह ही है । शादी के शुरू में ही उसने इतने हाई स्टैंडर्ड सैट कर दिए जिसका शिकार ये सब कामवालियां हो रही हैं।

धन्यवाद…

(सचिन ओम गुप्ता, चित्रकूट धाम)