“हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें“
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जो पहली नजर में आँखों में बसी न हो..
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जो देखकर इश्क़ को शरमायी न हो…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जो ख़्वाबों में आई न हो…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जो इश्क़ की ज़ुल्फो से खेला न हो…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जिसमें बनी बात बिगड़ी न हो…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जो देख कर इश्क़ को इतराया न हो…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जिसकी साँसो की खुशबू मन में बसी न हो…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जिसने मिलने की इश्क़ से जिद की न हो…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जिसमें रूठना मनाना न होता…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें
जिसमे थोड़ी टकरार होती न हो…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जिसमें मंजूरी का एहसास न हो…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जिसमें दूरी का एहसास न हो…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जिसमें रोना न पड़ता हो…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जिसमें संभालें न जी संभलता हो…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जिसमें उसका हाल किसी से पूछा न हो…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जिसमें याद न जाए भुलाने पर…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जिसमें अकेले दिन बीत न जाए सालों तक…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जो रोया न हो रातों को…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जिसने संभाले न हो अपने जज्बातों को…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जिसने लिखा न हो कुछ उस इश्क़ के बारे में…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जिसने इश्क़ जरा भी किया न हो…
हम उस इश्क़ को इश्क़ क्या कहें,
जिसने इश्क़ जरा भी किया न हो…
धन्यवाद…
(सचिन ओम गुप्ता, चित्रकूट धाम)